स्वस्तिवाचन मंत्र, स्वस्ति वाचन मंत्र- अर्थ, विधि और इतिहास

स्वस्ति वाचन मंत्र भारतीय धार्मिक और आध्यात्मिक परंपराओं में महत्वपूर्ण स्थान रखता है। यह मंत्र विशेष अवसरों पर शांति, समृद्धि और सकारात्मक ऊर्जा को आकर्षित करने के लिए पढ़ा जाता है।  यह मंत्र भगवान गणेश,भोलेनाथ , विष्णु , देवी सरस्वती, और अन्य देवताओं को समर्पित होता है और उनसे आशीर्वाद और सफलता की प्रार्थना करता है। स्वस्ति वाचन मंत्र का अर्थ शुभता और मंगलकामनाओं से संबंधित होता है।

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Swastivachan-Mantra

‘स्वस्ति’ का अर्थ है ‘शुभ’ और ‘वाचन’ का अर्थ है ‘पाठ’। इस मंत्र का उपयोग शांति, समृद्धि और सकारात्मक ऊर्जा को बढ़ाने के लिए किया जाता है। यह प्रार्थना विशेष रूप से वैदिक मंत्रों के माध्यम से की जाती है, जो देवी-देवताओं से सुख-समृद्धि और हर प्रकार की बाधाओं से मुक्ति की कामना करती है।

स्वस्ति न इन्द्रो वृद्धश्रवाः।

स्वस्ति नः पूषा विश्ववेदाः।

स्वस्ति नस्तार्क्ष्यो अरिष्टनेमिः।

स्वस्ति नो बृहस्पतिर्दधातु 

शान्तिः शान्तिः शान्तिः ॥

यह मंत्र वैदिक ऋचाओं का हिस्सा है, जो समृद्धि, कल्याण और शांति की कामना करता है। इस मंत्र का शाब्दिक अर्थ और व्याख्या निम्नलिखित है:

स्वस्ति न इन्द्रो वृद्धश्रवाः:

इस अंश में इंद्र देवता की प्रार्थना की गई है। इंद्र, जो वीरता और पराक्रम के देवता हैं, और जिनकी कीर्ति हमेशा बढ़ती रहती है, हमें स्वस्ति (सुख-समृद्धि) प्रदान करें। इंद्र का आह्वान उनके शौर्य और उनकी रक्षा करने की क्षमता के लिए किया जाता है, ताकि वे हमें हर संकट से बचाएं और हमारी विजय सुनिश्चित करें।

स्वस्ति नः पूषा विश्ववेदाः:

यहाँ पूषा देवता से आशीर्वाद माँगा गया है। पूषा, जो ज्ञान के भंडार हैं और समस्त विश्व का पालन करते हैं, हमें स्वस्ति (कल्याण) प्रदान करें। पूषा देवता को न केवल खेतों और पशुओं की समृद्धि का संरक्षक माना जाता है, बल्कि वे जीवन के हर क्षेत्र में विकास और पोषण प्रदान करने वाले भी हैं।

स्वस्ति नस्तार्क्ष्यो अरिष्टनेमिः:

इस अंश में तार्क्ष्य (गरुड़) की प्रार्थना की गई है। गरुड़, जो विष्णु के वाहन हैं और जिनका चक्र (नेमि) अविनाशी है, हमें स्वस्ति (सुख-समृद्धि) प्रदान करें। गरुड़ को उनकी अद्वितीय गति और उनके द्वारा बुराईयों से रक्षा करने की शक्ति के लिए पूजा जाता है। उनका आह्वान हमारे जीवन से नकारात्मकता को दूर करने के लिए किया जाता है।

स्वस्ति नो बृहस्पतिर्दधातु:

इस भाग में बृहस्पति देवता से प्रार्थना की गई है। बृहस्पति, जो देवताओं के गुरु हैं और ज्ञान एवं बुद्धि के प्रतीक हैं, हमें स्वस्ति (कल्याण) प्रदान करें। बृहस्पति देवता से आशा की जाती है कि वे हमें विवेकपूर्ण निर्णय लेने की शक्ति प्रदान करें और हमारी बौद्धिक क्षमता को बढ़ाएं।

शान्तिः शान्तिः शान्तिः:

इसका अर्थ है “शांति, शांति, शांति।” इसे तीन बार दोहराया जाता है ताकि आध्यात्मिक, आधिभौतिक, और आधिदैविक स्तरों पर शांति स्थापित हो सके। यह तीनों स्तरों पर शांति के लिए एक गहन प्रार्थना है:

  • आध्यात्मिक शांति का तात्पर्य है आत्मा की शांति।
  • आधिभौतिक शांति बाहरी दुनिया और भौतिक तत्वों के साथ सामंजस्य से संबंधित है।
  • आधिदैविक शांति दिव्य शक्तियों और प्रकृति की ताकतों के साथ तालमेल बिठाने से संबंधित है।

विस्तृत रूप से:

  • स्वस्ति: यह शब्द “कल्याण”, “सुख-समृद्धि”, और “शुभता” को दर्शाता है। इसका उद्देश्य जीवन में हर प्रकार की सकारात्मकता और कल्याण को आकर्षित करना है।
  • इंद्र: युद्ध और पराक्रम के देवता, जो विजय के प्रतीक हैं और विपत्तियों से रक्षा करते हैं।
  • पूषा: समृद्धि और ज्ञान के देवता, जो जीवन के हर पहलू में पोषण प्रदान करते हैं।
  • तार्क्ष्य: विष्णु के वाहन, गरुड़, जो हमारे जीवन से सभी प्रकार की नकारात्मकता और बुराई को दूर करते हैं।
  • बृहस्पति: ज्ञान और बुद्धि के देवता, जिनसे विवेकपूर्ण और समर्पित मार्गदर्शन की प्रार्थना की जाती है।
  • शांति: यह तीन बार दोहराने का उद्देश्य मानसिक, भौतिक, और दैवीय स्तर पर संपूर्ण शांति को प्राप्त करना है।

अतिरिक्त विवरण:

  • इस मंत्र का उच्चारण शुभ अवसरों, धार्मिक अनुष्ठानों और ध्यान के दौरान किया जाता है। इसका पाठ मानसिक शांति, व्यक्तिगत कल्याण, और सामाजिक समृद्धि के लिए लाभकारी माना जाता है।
  • मंत्र के प्रभाव से व्यक्ति के चारों ओर सकारात्मक ऊर्जा का निर्माण होता है, जो जीवन की चुनौतियों से जूझने और सकारात्मकता को बनाए रखने में सहायक होता है।
  • इस मंत्र का अनुशासनपूर्वक उच्चारण न केवल आत्मिक उन्नति में मदद करता है, बल्कि यह व्यक्ति को दिव्य शक्तियों के करीब लाने और समस्त बाधाओं को दूर करने का माध्यम भी बनता है।

इस मंत्र का नियमित पाठ आत्मिक उन्नति के साथ-साथ जीवन की समस्याओं से लड़ने की क्षमता बढ़ाता है और व्यक्ति को एक शांतिपूर्ण और समृद्ध जीवन जीने में मदद करता है।

स्वस्ति वाचन मंत्र की विधि

स्वस्ति वाचन मंत्र का पाठ करने के लिए विधि को सही तरीके से समझना और पालन करना आवश्यक है। यहाँ हम इसे विस्तार से बता रहे हैं:

1. शुद्धि और स्वच्छता

मंत्र पाठ से पहले व्यक्ति को शारीरिक और मानसिक रूप से शुद्ध होना चाहिए। स्नान करना, साफ कपड़े पहनना और स्वच्छ स्थान का चयन करना अनिवार्य है।

2. आसन का चयन

स्वस्ति वाचन मंत्र का पाठ शांत और स्थिर मन से करना चाहिए। इसके लिए किसी उचित आसन (जैसे सुखासन या पद्मासन) का चयन करें।

3. दीप प्रज्वलित करना

दीपक जलाने से वातावरण में सकारात्मक ऊर्जा बढ़ती है। घी का दीपक या तेल का दीपक दोनों का उपयोग किया जा सकता है।

4. आचमन और प्राणायाम

मंत्र पाठ से पहले तीन बार आचमन करें और प्राणायाम करें। इससे मन स्थिर होता है और शुद्धता बढ़ती है।

5. मंत्र पाठ

मंत्र पाठ करते समय स्वर सही होना चाहिए और उच्चारण स्पष्ट होना चाहिए। मंत्र का पाठ निम्नलिखित तरीके से करें:

  • पहले तीन बार ओम का उच्चारण करें।
  • फिर स्वस्ति वाचन मंत्र का पाठ करें।

6. ध्यान और शांति

मंत्र पाठ के बाद ध्यान लगाएं और मन को शांत रखें। इससे पाठ का प्रभाव अधिक बढ़ता है।

स्वस्ति वाचन मंत्र के लाभ

स्वस्ति वाचन मंत्र के पाठ से अनेक लाभ होते हैं, जिनमें प्रमुख हैं:

1. शांति और समृद्धि

मंत्र का नियमित पाठ मानसिक शांति और आत्मिक संतोष प्रदान करता है। यह घर और परिवार में समृद्धि लाने में सहायक होता है।

2. सकारात्मक ऊर्जा

मंत्र के उच्चारण से नकारात्मक ऊर्जाओं का नाश होता है और सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। इससे व्यक्ति के जीवन में सुख और सफलता का मार्ग प्रशस्त होता है।

3. रोग और बाधाओं से मुक्ति

स्वस्ति वाचन मंत्र का पाठ स्वास्थ्य को सुधारने और रोगों से मुक्ति दिलाने में मदद करता है। यह मंत्र जीवन में आने वाली विभिन्न बाधाओं को भी दूर करने में सक्षम है।

4. देवताओं की कृपा

इस मंत्र का उच्चारण देवी-देवताओं की कृपा प्राप्त करने का माध्यम है। इससे व्यक्ति को उनके आशीर्वाद और संरक्षण की प्राप्ति होती है।

5. मानसिक शांति और ध्यान में सहायता

स्वस्ति वाचन मंत्र के नियमित पाठ से ध्यान की एकाग्रता में वृद्धि होती है और मानसिक शांति प्राप्त होती है। यह ध्यान के समय मन को एकाग्र और शांत रखने में सहायक होता है।

स्वस्ति वाचन मंत्र का इतिहास प्राचीन वैदिक साहित्य में गहराई से निहित है। यह मंत्र भारतीय धर्म और संस्कृति का महत्वपूर्ण हिस्सा है, जिसका उद्देश्य शांति, समृद्धि और कल्याण की कामना करना है। आइए जानें इस मंत्र का इतिहास और इसके रचयिता के बारे में।

स्वस्ति वाचन मंत्र का इतिहास

स्वस्ति वाचन मंत्र का उल्लेख वैदिक साहित्य में पाया जाता है, जो ऋग्वेद, यजुर्वेद, और अथर्ववेद के समय का है। यह मंत्र हजारों साल पुराना है और वैदिक काल के ऋषियों द्वारा रचा गया था। वैदिक साहित्य में इसे धार्मिक अनुष्ठानों, यज्ञों और उत्सवों के दौरान पढ़ा जाता था।

वैदिक साहित्य में स्वस्ति वाचन

स्वस्ति वाचन शब्द का उपयोग वैदिक मंत्रों के पाठ के लिए किया जाता है जो शुभता और कल्याण की कामना करते हैं। यह मंत्र विशेष रूप से यजुर्वेद में पाए जाते हैं, जो अनुष्ठानों और धार्मिक कर्मकांडों के लिए निर्देश प्रदान करते हैं। वैदिक काल के दौरान, ये मंत्र उच्चारित किए जाते थे ताकि देवी-देवताओं से आशीर्वाद प्राप्त किया जा सके और मानव जीवन में सुख, शांति और समृद्धि लाई जा सके।

ऋषियों का योगदान

वैदिक काल के ऋषि-मुनि जैसे व्यास, वाल्मीकि, वशिष्ठ, विश्वामित्र आदि ने इन मंत्रों को संहिताबद्ध किया। हालांकि, स्वस्ति वाचन मंत्र को किसी एक व्यक्ति द्वारा नहीं, बल्कि वैदिक समाज के सामूहिक ज्ञान और अनुभव के आधार पर संकलित किया गया था। यह वैदिक ज्ञान की एक शाखा है, जो युगों से पीढ़ी दर पीढ़ी स्थानांतरित होती आई है।

स्वस्ति वाचन का धार्मिक महत्व

वैदिक काल में स्वस्ति वाचन का धार्मिक महत्व अत्यधिक था। यह मंत्र यज्ञ, पूजा, और विभिन्न धार्मिक अनुष्ठानों के दौरान शांति और कल्याण की कामना के लिए उच्चारित किया जाता था। विशेष रूप से यह मंत्र राजा के अभिषेक, गृह प्रवेश, विवाह, और अन्य धार्मिक उत्सवों के समय उपयोग में लाया जाता था ताकि अनुष्ठान सफल हो और उसमें शामिल सभी व्यक्तियों को देवी-देवताओं का आशीर्वाद प्राप्त हो।

स्वस्ति वाचन मंत्र के रचयिता

स्वस्ति वाचन मंत्र के सटीक रचयिता का उल्लेख करना कठिन है क्योंकि वैदिक साहित्य का रचना कार्य व्यक्तिगत रूप से न होकर सामूहिक रूप से हुआ था। यह मंत्र वैदिक ऋषियों की सामूहिक धरोहर है। ये ऋषि अपनी गहन साधना, ध्यान, और आध्यात्मिक ज्ञान के माध्यम से इन मंत्रों की रचना करते थे। इन मंत्रों का संकलन और संग्रहण पीढ़ी दर पीढ़ी होता रहा है और इस प्रकार यह ज्ञान आज भी प्रचलित है।

प्रमुख ऋषियों का योगदान

  1. व्यास: महाभारत और वेदों के संपादक माने जाते हैं, जिनकी महत्वपूर्ण भूमिका वैदिक साहित्य को संरक्षित और संहिताबद्ध करने में थी।
  2. वाल्मीकि: रामायण के रचयिता, जिन्होंने वैदिक साहित्य में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया।
  3. वशिष्ठ: प्रसिद्ध वैदिक ऋषि, जो अनेक वैदिक मंत्रों के रचयिता माने जाते हैं।
  4. विश्वामित्र: जिन्होंने अनेक वैदिक ऋचाओं और मंत्रों का संकलन किया।

संस्कृत ग्रंथों में उल्लेख

वैदिक मंत्रों का विवरण ऋग्वेद और यजुर्वेद में व्यापक रूप से मिलता है। इन वेदों में स्वस्ति वाचन मंत्र के पाठ की विधि और उसका महत्व बताया गया है। महाभारत, रामायण, और अन्य प्राचीन ग्रंथों में भी इस मंत्र का उल्लेख किया गया है, जो इसके धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व को दर्शाता है।

अनुकरणीय स्रोत

प्राचीन काल में, इन मंत्रों का ज्ञान केवल श्रुति (श्रवण) पर आधारित था। यानी गुरु से शिष्य तक मौखिक रूप से स्थानांतरित होता था। बाद में यह ज्ञान लिखित रूप में संग्रहित किया गया, जिससे इन मंत्रों का संकलन और संरक्षण हुआ। यह सुनिश्चित किया गया कि यह ज्ञान आने वाली पीढ़ियों तक सुरक्षित पहुँच सके।

उपसंहार

स्वस्ति वाचन मंत्र भारतीय वैदिक परंपरा का एक अभिन्न हिस्सा है, जो हजारों वर्षों से समृद्धि, कल्याण और शांति की कामना के लिए प्रयोग में लाया जा रहा है। इसका रचना कार्य वैदिक काल के ऋषियों द्वारा किया गया था, जिनके सामूहिक ज्ञान और अनुभव से यह मंत्र संहिताबद्ध हुआ। इस मंत्र का पाठ आज भी विभिन्न धार्मिक अनुष्ठानों में महत्वपूर्ण माना जाता है और यह हमारी सांस्कृतिक धरोहर का एक अमूल्य हिस्सा है।

FAQ

स्वस्ति वाचन मंत्र किस समय करना चाहिए?

स्वस्ति वाचन मंत्र का पाठ किसी भी शुभ अवसर पर किया जा सकता है। विशेष रूप से यह विवाह, गृह प्रवेश, यज्ञ, पूजा आदि के समय किया जाता है। इसका उच्चारण सुबह और शाम दोनों समय भी लाभकारी होता है।

क्या स्वस्ति वाचन मंत्र का पाठ घर पर किया जा सकता है?

हाँ, स्वस्ति वाचन मंत्र का पाठ घर पर भी किया जा सकता है। इसके लिए कोई विशेष स्थान या समय की आवश्यकता नहीं है, केवल शुद्धता और सही उच्चारण का ध्यान रखना आवश्यक है।

क्या किसी विशेष पूजा सामग्री की आवश्यकता होती है?

स्वस्ति वाचन मंत्र के पाठ के लिए किसी विशेष पूजा सामग्री की आवश्यकता नहीं होती। लेकिन दीपक, धूप, और फूलों का उपयोग वातावरण को शुद्ध और सकारात्मक बनाने के लिए किया जा सकता है।

क्या इसे किसी विशेष गुरु की उपस्थिति में करना चाहिए?

स्वस्ति वाचन मंत्र का पाठ स्वयं भी किया जा सकता है। लेकिन यदि आप इसे किसी विशेष धार्मिक अनुष्ठान या यज्ञ में कर रहे हैं, तो गुरु या पंडित की उपस्थिति में इसे करना लाभकारी हो सकता है।

क्या इसे रोज़ करना चाहिए?

रोज़ाना स्वस्ति वाचन मंत्र का पाठ करने से व्यक्ति को शांति, समृद्धि और सकारात्मक ऊर्जा प्राप्त होती है। यह मानसिक शांति और ध्यान में एकाग्रता बढ़ाने के लिए भी सहायक है।

क्या स्वस्ति वाचन मंत्र किसी विशेष धर्म से संबंधित है?

स्वस्ति वाचन मंत्र हिंदू धर्म में विशेष रूप से महत्वपूर्ण है, लेकिन इसके पाठ का लाभ सभी लोग प्राप्त कर सकते हैं, चाहे वे किसी भी धर्म से संबंधित हों।

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