चंद्रप्रभु भगवान, जैन धर्म के आठवें तीर्थंकर, उनकी शिक्षाएं और जीवन हमें आज भी प्रेरित करती हैं। उनके द्वारा दिखाए गए मार्ग पर चलने से हम अपने जीवन में शांति और संतोष पा सकते हैं।
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Shri Chandraprabhu Chalisa
वीतराग सर्वज्ञ जिन, जिन वाणी को ध्याय ।
लिखने का साहस करुं, चालीसा सिर नाय ।
देहरे के श्रीचन्द्र को, पूजौं मन वच काय ।
ऋद्धि सिद्धि मंगल करें, विघ्न दूर हो जाय ।
जय श्रीचन्द्र दया के सागर, देहरे वाले ज्ञान उजागर ।
शांति छवि मूरति अति प्यारी, भेष दिगम्बर धारा भारी ।
नासा पर है दृष्टि तुम्हारी, मोहनी मूरति कितनी प्यारी ।
देवों के तुम देव कहावो, कष्ट भक्त के दूर हटावो ।
समन्तभद्र मुनिवर ने ध्याया, पिंडी फटी दर्श तुम पाया ।
तुम जग में सर्वज्ञ कहावो, अष्टम तीर्थंकर कहलावो ।
महासेन के राजदुलारे, मात सुलक्षणा के हो प्यारे ।
चन्द्रपुरी नगरी अति नामी, जन्म लिया चन्द्र-प्रभु स्वामी ।
पौष वदी ग्यारस को जन्मे, नर नारी हरषे तब मन में ।
काम क्रोध तृष्णा दुखकारी, त्याग सुखद मुनि दीक्षा धारी ।
फाल्गुन वदी सप्तमी भाई, केवल ज्ञान हुआ सुखदाई ।
फिर सम्मेद शिखर पर जाके, मोक्ष गये प्रभु आप वहां से।
लोभ मोह और छोड़ी माया, तुमने मान कषाय नसाया ।
रागी नहीं, नहीं तू द्वेषी, वीतराग तू हित उपदेशी ।
पंचम काल महा दुखदाई, धर्म कर्म भूले सब भाई ।
अलवर प्रान्त में नगर तिजारा, होय जहां पर दर्शन प्यारा।
उत्तर दिशि में देहरा माहीं, वहां आकर प्रभुता प्रगटाई ।
सावन सुदि दशमि शुभ नामी, प्रकट भये त्रिभुवन के स्वामी।
चिह्न चन्द्र का लख नर नारी, चंद्रप्रभु की मूरती मानी ।
मूर्ति आपकी अति उजयाली, लगता हीरा भी है जाली ।
अतिशय चन्द्र प्रभु का भारी, सुनकर आते यात्री भारी ।
फाल्गुन सुदी सप्तमी प्यारी, जुड़ता है मेला यहां भारी ।
कहलाने को तो शशि धर हो, तेज पुंज रवि से बढ़कर हो ।
नाम तुम्हारा जग में सांचा, ध्यावत भागत भूत पिशाचा ।
राक्षस भूत प्रेत सब भागें, तुम सुमिरत भय कभी न लागे।
कीर्ति तुम्हारी है अति भारी, गुण गाते नित नर और नारी।
जिस पर होती कृपा तुम्हारी, संकट झट कटता ही भारी ।
जो भी जैसी आश लगाता, पूरी उसे तुरत कर पाता ।
दुखिया दर पर जो आते हैं, संकट सब खो कर जाते हैं ।
खुला सभी हित प्रभु द्वार है, चमत्कार को नमस्कार है ।
अन्धा भी यदि ध्यान लगावे, उसके नेत्र शीघ्र खुल जावें ।
बहरा भी सुनने लग जावे, पगले का पागलपन जावे ।
अखंड ज्योति का घृत जो लगावे संकट उसका सब कट जावे ।
चरणों की रज अति सुखकारी, दुख दरिद्र सब नाशनहारी ।
चालीसा जो मन से ध्यावे, पुत्र पौत्र सब सम्पति पावे ।
पार करो दुखियों की नैया, स्वामी तुम बिन नहीं खिवैया।
प्रभु मैं तुम से कुछ नहिं चाहूं दर्श तिहारा निश दिन पाऊँ।
करुं वन्दना आपकी, श्रीचन्द्र प्रभु जिनराज ।
जंगल में मंगल कियो, रखो भक्त की लाज ।
चंद्रप्रभु भगवान का जीवन परिचय
चंद्रप्रभु भगवान का जन्म इक्ष्वाकु वंश में हुआ था। वे राजा महा-सेन और रानी लक्ष्मणा के पुत्र थे। उनका जन्म स्थल चन्द्रपुर (वर्तमान में चन्देरी) था।
चंद्रप्रभु भगवान का परिवार धार्मिक और प्रतिष्ठित था। उनके पिता राजा महा-सेन और माता रानी लक्ष्मणा जैन धर्म के अनुयायी थे।
चंद्रप्रभु भगवान ने प्रारंभिक शिक्षा अपने परिवार से प्राप्त की। उन्होंने धार्मिक ग्रंथों का अध्ययन किया और गहरे ध्यान में लीन हो गए।
चंद्रप्रभु भगवान ने 30 वर्ष की आयु में राजपाट त्याग कर संन्यास धारण किया। वे जंगलों में जाकर तपस्या करने लगे और अपने आत्मा की खोज में जुट गए।
चंद्रप्रभु भगवान की शिक्षाएं
चंद्रप्रभु भगवान ने अहिंसा का महत्व समझाया। उन्होंने कहा कि सभी जीवों के प्रति दया और करुणा का भाव रखना चाहिए।
सत्य को अपने जीवन का आधार बनाना चाहिए। उन्होंने कहा कि सत्य की राह पर चलने से हम आत्मा की शुद्धि प्राप्त कर सकते हैं।
अपरिग्रह का अर्थ है, संपत्ति और सांसारिक वस्तुओं का त्याग करना। चंद्रप्रभु भगवान ने हमें समझाया कि अधिक संपत्ति हमें मोह-माया में फंसा देती है।
चंद्रप्रभु भगवान ने विभिन्न ध्यान विधियों का प्रयोग किया। उन्होंने ध्यान के माध्यम से आत्मा की शुद्धि और मोक्ष प्राप्ति का मार्ग बताया।
चंद्रप्रभु भगवान की प्रसिद्ध कथाएँ
चंद्रप्रभु और सर्प
एक बार चंद्रप्रभु भगवान ध्यान में लीन थे और एक सर्प उनके पास आया। चंद्रप्रभु ने सर्प को अहिंसा और करुणा का पाठ पढ़ाया।
चंद्रप्रभु और राजा
एक राजा ने चंद्रप्रभु भगवान की तपस्या को देखकर उनका अपमान किया। लेकिन चंद्रप्रभु ने उसे क्षमा कर दिया और अहिंसा का महत्व समझाया।
चंद्रप्रभु भगवान ने कठिन तपस्या के बाद सम्मेद शिखर पर मोक्ष प्राप्त किया। उनके मोक्ष प्राप्ति का दिन आज भी जैन समाज में विशेष महत्व रखता है।
चंद्रप्रभु भगवान के अनुयायी और उनका प्रभाव
चंद्रप्रभु भगवान के अनुयायी उनकी शिक्षाओं का पालन करते हैं। उनकी शिक्षाएं आज भी समाज में शांति और सद्भावना का संदेश फैलाती हैं।
भारत में कई प्रसिद्ध मंदिर चंद्रप्रभु भगवान को समर्पित हैं। इनमें चंदेरी का मंदिर विशेष प्रसिद्ध है। चंद्रप्रभु भगवान की पूजा में ध्यान, मंत्र जाप और प्रतिमा की आराधना शामिल है।
चंद्रप्रभु भगवान के जन्मदिन और मोक्ष प्राप्ति दिवस को जैन समाज में बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। चंद्रप्रभु भगवान का प्रतीक चंद्रमा है। उनकी प्रतिमा के साथ चंद्रमा का चिन्ह अवश्य होता है।
चंद्रप्रभु भगवान के जीवन और शिक्षाओं पर कई ग्रंथ लिखे गए हैं। इनमें प्रमुख ग्रंथ “चंद्रप्रभु चरित” है। चंद्रप्रभु भगवान की शिक्षाएं आज भी समाज में प्रासंगिक हैं। उनकी शिक्षाएं हमें जीवन की सच्चाई और आत्मा की शुद्धि की ओर प्रेरित करती हैं।
निष्कर्ष
चंद्रप्रभु भगवान की शिक्षाएं और उनका जीवन हमें सिखाता है कि सत्य, अहिंसा और अपरिग्रह के मार्ग पर चलकर हम आत्मा की शुद्धि और मोक्ष प्राप्त कर सकते हैं। उनका जीवन और उनकी शिक्षाएं हमें प्रेरित करती हैं कि हम भी अपने जीवन में इन मूल्यों को अपनाएं।
चंद्रप्रभु भगवान कौन थे?
चंद्रप्रभु भगवान जैन धर्म के आठवें तीर्थंकर थे।
चंद्रप्रभु भगवान का जन्म कब और कहाँ हुआ था?
चंद्रप्रभु भगवान का जन्म चन्द्रपुर (वर्तमान में चन्देरी) में हुआ था।
चंद्रप्रभु भगवान की प्रमुख शिक्षाएं क्या हैं?
उनकी प्रमुख शिक्षाएं अहिंसा, सत्य और अपरिग्रह हैं।
चंद्रप्रभु भगवान का मोक्ष कहाँ और कैसे हुआ?
चंद्रप्रभु भगवान ने सम्मेद शिखर पर कठिन तपस्या के बाद मोक्ष प्राप्त किया।
चंद्रप्रभु भगवान के अनुयायियों पर उनका क्या प्रभाव है?
चंद्रप्रभु भगवान के अनुयायी उनकी शिक्षाओं का पालन करते हैं और उनके जीवन से प्रेरणा लेते हैं।